संतो धोखा कासूं कहिए। गुण में निर्गुण, निर्गु्ण में गुण बाट छाड़ि क्यों बहिए।। अजरा अमर कथे सब कोई अलख न कथिआ जाई। नाती बरन रूप नहीं...

हरि

हरि

हरि

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God


संतो धोखा कासूं कहिए।
गुण में निर्गुण, निर्गु्ण में गुण बाट छाड़ि क्यों बहिए।।
अजरा अमर कथे सब कोई अलख न कथिआ जाई।
नाती बरन रूप नहीं वाके घट—घट रहा समाई।।

पिण्ड ब्रह्माण्ड कथै सब कोई। वाके आदि अरू अन्त न होई।।
पिण्ड—ब्रह्माण्ड छाड़ि जो कथिए कहे कबीर हरि सोई।।

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