भाँग तम्बाकू धूतरा, आँफू और शराब। कौन करेगा बन्दगी, ये तो हुए खराब।। भाँग भखे बल बुद्धि को, आँफू अहमक होय। दो अमलन अवगुण कहा, ज्ञानवन्त...

नशा छाड़ि जीव भजन करहु

नशा छाड़ि जीव भजन करहु

नशा छाड़ि जीव भजन करहु

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नशा छाड़ि जीव भजन करहु

भाँग तम्बाकू धूतरा, आँफू और शराब।
कौन करेगा बन्दगी, ये तो हुए खराब।।
भाँग भखे बल बुद्धि को, आँफू अहमक होय।
दो अमलन अवगुण कहा, ज्ञानवन्त नर जोय।।

अवगुण कहूँ शराब का, सुनहु संत चित लाय।
मानुस ते पशुआ करे, द्रव्य गांठ का जाय।।
काम हरक्कत बल घटै, तृष्णा नाहीं ठौर।
ढिग होय बैठा दीन सा, एक चिलम भर और।।
पानी पृथ्वी के हते, धूआँ सुनके जीव।
हुक्का में हिंसा घनी, क्यों कर पीवे पीव।।

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