12:32 PM
जासु वचन रविकर निकर, भ्रम तम देत नशाय।।
कबीर हरे, करतार हरे, प्रभु करूणा के अवतार हरे।
गोविन्द हरे, गोपाल हरे, जगजीवन दीन दयाल हरे।।
श्रीराम हरे, सत्यनाम हरे, मुदमंगलमय सुखधाम हरे।।
ओ3म् ओ3म् ओ3म्
रक्षा सबकी साथ ही, भोजन संगहि होय।
कार्य करे हम ओजमय, एक साथ सब कोय।।
पाठन—पठन सुभांति से, तेजस्वी ठहराय।
भाव नहीं विद्वेष का हममें रहने पाय।।
ओ3म् शांति: शांति: शांति:
हे ज्ञानदायक, सर्वनायक आत्ममय हो भावना ।
धन और धरती की नमन में, मोहमय हो कामना ।।
वायु, किरण, जल, गगन सम धन और धरती नाथ हो ।
दु:ख कलह का संसार मिट, सुख—शांति सबके साथ हो ।।
त्याग तो ऐसा हम करें, सब कछु एक ही बार ।
प्रभु का सब मेरा नहीं, मन में ले यह धार ।।
हो कर्ममय जीवन हमारा, कर्म पूजा नेम हो ।
कर्म में अभिमान का परित्याग ही तो क्षेम हो ।।
कर्म शुभ कर त्याग शुभ, भगवान तेरी भक्ति हो ।
जो किछु मिले प्रसाद, उसमें शांतिमय अनुरक्ति हो ।।
सब उद्योगी देव, आलस को परित्याग कर ।
करै त्यागमय सेव, सेवक बनै समाज का ।।
सब जीव तो संसार के, बहु भांति से संतप्त हैं ।
आधि—व्याधि, दु:खादि से, व्याकुल—विकल संत्रस्त हैं ।।
हे देव मंगलमय मिटा दो, कष्ट की उद्भावना ।
भगवान परिपूरण करो, शुभ शांतिमय यह कामना ।।
सब विधि हो कल्याण, जीवन मंगल रूप हो ।
सुविधा मिले महान, सबको उन्नति के लिए ।।
भूख से व्याकुल रहे, फिर भक्ति हो सकती नहीं ।
वस्त्र से तन हीन हो, सुविधा नहीं मिलती कहीं ।।
तन ढांकने को वस्त्र, और भोजन टिकाने प्राण को ।
शांति सृजन के लिए, सबको दयामय दान दो ।।
साहब इतना दीजिए, जामें कुटुम्ब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय ।।
अवतार जिस गुरूदेव का, युगधर्म ले होता सदा ।
उस महामानव के लिए, दृढ़ भक्ति होवे सर्वदा ।।
हे नाथ जग में प्रकट हों, तब संत की शुभकामना ।
जो कलह, दु:ख, कुविचार का, जग से करें नित् खात्मा ।।
संत रूप भगवान, प्रकटे जग में सर्वदा ।
दे सबको शुभ ज्ञान, करें सुखी संसार को ।।
हे देव सत्गुरू, दीनबंधु ज्ञानमय हिय हेरिये ।
तम मोहमय, कुविचार सागर, धार जन को टेकिये ।।
जग में अविद्या का महा, चहुं ओर फैला राज जो ।
हे नाथ विद्या ज्योति से, मिट जाए तम का साज सो ।।
घट—घट व्यापक एक तू, सब जग के आधार ।
ज्यों प्रभु बिसरोगे हमें, कौन लगाबे पार ।।
हे दीनबन्धु अनाथ के, हम दीन शरणागत खड़े ।
नहिं ज्ञान है, न विचार हीं, नहिं धर्म, पाप हिये भरे ।।
मन में महा रविज्ञान का, सब भांति से प्रकाश हो ।
मिट जाये कलुषित भावना, शुभ—प्रेम का प्रिय हास हो ।।
वीर्य, विनय, साहस, सदय, शील, क्षमा, सत् देहु ।
मन से, तन से, वचन से, कायरता हर लेहु ।।
ओ3म् ! शांति: शांति: शांति:
दरमादे ठाढे दरबार
तुझ बिनु सुरति करै को मेरी, दरशन दीजै खोलि किवाड़ ।।
तूं धन, धनी, उदार, तिआगी, श्रवणन सुनिअतु सुयश तोहार ।
मांगहु काहि रंक सभ देखहुं, तुम हीं ते मेरो निस्तार ।।
जयदेव, नामा, विप्र सुदामा, तिनकउ कृपा भई है अपार ।
कहि कबीर तूं समरथ दाते, चारि पदारथ देत न बार ।।
अथ ध्यानम् ..............................
कबीर नयन निहारहुं, तुझ कहूं, श्रवण सुनहुं तुअ नाम ।
बए न उचरहुं तुअ नाम जी, चरण कमल रिद ठाम ।।
सुन संधिआ तेरी देव—देवाकर, अधिपति आधि समाई ।
सिद्ध समाधि अंत नहिं पाइआ, लागि रही शरणाई ।।
लेहु आरती हो पुरख निरंजन, सत्गुरू पूजहु भाई ।
ठाढा ब्रह्मा निगम विचारे, अलखु न लखिआ जाई ।।
तत्व तेल नाम किआ बाती, दीपक दै उजियारा ।
ज्योति लाई जगदीश जगाइआ, बूझै बूझनिहारा ।।
पंचे शबद अनाहद बाजै, संगे सारिंगपानी ।
कबीर दास तेरी आरती कीन्हीं निरंकार निरवाणी ।।
साहेब बन्दगी ! साहेब बन्दगी ! साहेब बन्दगी !
ओ3म् बंदऊ सत्य कबीर गुरू, चरण कमल शिरनाय। जासु वचन रविकर निकर, भ्रम तम देत नशाय।। कबीर हरे, करतार हरे, प्रभु करूणा के अवतार हरे। गोव...
हमारी प्रार्थना
हमारी प्रार्थना
हमारी प्रार्थना (प्रात: स्मरणीय परम पूज्य गुरूदेव श्रीयुत् बौआ साहब जू द्वारा रचित व संकलित)
हमारी प्रार्थना
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ओ3म्
बंदऊ सत्य कबीर गुरू, चरण कमल शिरनाय।जासु वचन रविकर निकर, भ्रम तम देत नशाय।।
कबीर हरे, करतार हरे, प्रभु करूणा के अवतार हरे।
गोविन्द हरे, गोपाल हरे, जगजीवन दीन दयाल हरे।।
श्रीराम हरे, सत्यनाम हरे, मुदमंगलमय सुखधाम हरे।।
ओ3म् ओ3म् ओ3म्
रक्षा सबकी साथ ही, भोजन संगहि होय।
कार्य करे हम ओजमय, एक साथ सब कोय।।
पाठन—पठन सुभांति से, तेजस्वी ठहराय।
भाव नहीं विद्वेष का हममें रहने पाय।।
ओ3म् शांति: शांति: शांति:
हे ज्ञानदायक, सर्वनायक आत्ममय हो भावना ।
धन और धरती की नमन में, मोहमय हो कामना ।।
वायु, किरण, जल, गगन सम धन और धरती नाथ हो ।
दु:ख कलह का संसार मिट, सुख—शांति सबके साथ हो ।।
त्याग तो ऐसा हम करें, सब कछु एक ही बार ।
प्रभु का सब मेरा नहीं, मन में ले यह धार ।।
हो कर्ममय जीवन हमारा, कर्म पूजा नेम हो ।
कर्म में अभिमान का परित्याग ही तो क्षेम हो ।।
कर्म शुभ कर त्याग शुभ, भगवान तेरी भक्ति हो ।
जो किछु मिले प्रसाद, उसमें शांतिमय अनुरक्ति हो ।।
सब उद्योगी देव, आलस को परित्याग कर ।
करै त्यागमय सेव, सेवक बनै समाज का ।।
सब जीव तो संसार के, बहु भांति से संतप्त हैं ।
आधि—व्याधि, दु:खादि से, व्याकुल—विकल संत्रस्त हैं ।।
हे देव मंगलमय मिटा दो, कष्ट की उद्भावना ।
भगवान परिपूरण करो, शुभ शांतिमय यह कामना ।।
सब विधि हो कल्याण, जीवन मंगल रूप हो ।
सुविधा मिले महान, सबको उन्नति के लिए ।।
भूख से व्याकुल रहे, फिर भक्ति हो सकती नहीं ।
वस्त्र से तन हीन हो, सुविधा नहीं मिलती कहीं ।।
तन ढांकने को वस्त्र, और भोजन टिकाने प्राण को ।
शांति सृजन के लिए, सबको दयामय दान दो ।।
साहब इतना दीजिए, जामें कुटुम्ब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूं, साधु न भूखा जाय ।।
अवतार जिस गुरूदेव का, युगधर्म ले होता सदा ।
उस महामानव के लिए, दृढ़ भक्ति होवे सर्वदा ।।
हे नाथ जग में प्रकट हों, तब संत की शुभकामना ।
जो कलह, दु:ख, कुविचार का, जग से करें नित् खात्मा ।।
संत रूप भगवान, प्रकटे जग में सर्वदा ।
दे सबको शुभ ज्ञान, करें सुखी संसार को ।।
हे देव सत्गुरू, दीनबंधु ज्ञानमय हिय हेरिये ।
तम मोहमय, कुविचार सागर, धार जन को टेकिये ।।
जग में अविद्या का महा, चहुं ओर फैला राज जो ।
हे नाथ विद्या ज्योति से, मिट जाए तम का साज सो ।।
घट—घट व्यापक एक तू, सब जग के आधार ।
ज्यों प्रभु बिसरोगे हमें, कौन लगाबे पार ।।
हे दीनबन्धु अनाथ के, हम दीन शरणागत खड़े ।
नहिं ज्ञान है, न विचार हीं, नहिं धर्म, पाप हिये भरे ।।
मन में महा रविज्ञान का, सब भांति से प्रकाश हो ।
मिट जाये कलुषित भावना, शुभ—प्रेम का प्रिय हास हो ।।
वीर्य, विनय, साहस, सदय, शील, क्षमा, सत् देहु ।
मन से, तन से, वचन से, कायरता हर लेहु ।।
ओ3म् ! शांति: शांति: शांति:
दरमादे ठाढे दरबार
तुझ बिनु सुरति करै को मेरी, दरशन दीजै खोलि किवाड़ ।।
तूं धन, धनी, उदार, तिआगी, श्रवणन सुनिअतु सुयश तोहार ।
मांगहु काहि रंक सभ देखहुं, तुम हीं ते मेरो निस्तार ।।
जयदेव, नामा, विप्र सुदामा, तिनकउ कृपा भई है अपार ।
कहि कबीर तूं समरथ दाते, चारि पदारथ देत न बार ।।
अथ ध्यानम् ..............................
कबीर नयन निहारहुं, तुझ कहूं, श्रवण सुनहुं तुअ नाम ।
बए न उचरहुं तुअ नाम जी, चरण कमल रिद ठाम ।।
सुन संधिआ तेरी देव—देवाकर, अधिपति आधि समाई ।
सिद्ध समाधि अंत नहिं पाइआ, लागि रही शरणाई ।।
लेहु आरती हो पुरख निरंजन, सत्गुरू पूजहु भाई ।
ठाढा ब्रह्मा निगम विचारे, अलखु न लखिआ जाई ।।
तत्व तेल नाम किआ बाती, दीपक दै उजियारा ।
ज्योति लाई जगदीश जगाइआ, बूझै बूझनिहारा ।।
पंचे शबद अनाहद बाजै, संगे सारिंगपानी ।
कबीर दास तेरी आरती कीन्हीं निरंकार निरवाणी ।।
साहेब बन्दगी ! साहेब बन्दगी ! साहेब बन्दगी !
(प्रात: स्मरणीय परम पूज्य गुरूदेव श्रीयुत् बौआ साहब जू द्वारा रचित व संकलित)
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