ना इहु मानसु ना इहु देउ । ना इहु जती कहावै सेउ ।। ना इहु जोगी ना अवधूता । ना इसु माइ न काहू पूता ।।

जीव का स्वरूप Nature of Soul

जीव का स्वरूप Nature of Soul

जीव का स्वरूप Nature of Soul

8 10 99

ना इहु मानसु ना इहु देउ । ना इहु जती कहावै सेउ ।। ना इहु जोगी ना अवधूता । ना इसु माइ न काहू पूता ।।

इआ मंदर महि कौन बसाई । ता का अंतु न कोऊ पाई ।। ना इहु पिंडु न रकतू राती । ना ईहु ब्रहमनु न इहु खाती ।।ना इहु तपा कहावै सेखु । ना इहु जीबै न मरता देखु ।। इसु मरते कउ जे कोऊ रोवै । जो रोवै सोई पति खोवै ।। गुर प्रसाद मैं डगरो पाइआ । जीवन मरनु दोऊ मिटवाइआ ।। कहु कबीर इहु राम की अंसु । जस कागद पर मिटै न मंसु ।।

0 comments: