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भारत के महान संतों की श्रेणी में अग्रणी संत कबीर दास जी का जन्म काशी में लहरतारा नामक तालाब के पास सन् १३९८ में ज्येष्ठ पूर्णिमाी को हुआ।
यथा 'चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
ज्येष्ठ सुदी बरसाइत को पूरनमासी तिथि प्रकट भए ।।'
इनका पालन पोषण नीरू—नीमा नामक जुलाहा दंपति के यहां हुआ।
इनके जन्म के विषय में भी अनेक किवदंतियां प्रचलित है। कुछ लोगों का मानना है कि इनका जन्म एक ब्राह्मणी के यहां हुआ था । कबीर ने हिंदू-मुसलमान सभी समाज में व्याप्त रूढ़िवाद तथा कट्टरपंथ का खुलकर विरोध किया। उनके उपदेश बीजक नामक ग्रंथ में संकलित हैं जिसके तीन भाग हैं —साखी,सबद और रमैनी । गुरु ग्रंथ साहब में उनके २०० पद और २५० साखियां हैं। उन्होंने अपने उपदेश सरल भाषा में और दोहों के रूपों मे जनता के बीच पहुंचाया जो आसानी से लोकप्रिय हो गया। उन्होंने प्रचलित सभी कुप्रथाओं पर खुलकर कुठाराघात किया। मुर्ति पूजन के संबंध में वे कहते हैं—
'पाथर पूजे हरि मिले तों मै पूजूं पहाड़।
वा ते तो चक्की भली, पीस खाय संसार'
कबीर दिखावा का विरोध करते हैं वो कहते हैं कि तू यहां— वहां न भटक कर अपने मन के भीतर झांक। यथा —
'सुमिरन सुरति लगाई के मुख से कछु न बोल ।
बाहर का पट डारि के, भीतरि का पट खोल ।।
काशी में प्रचलित मान्यता है कि जो यहां मरता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। इस मान्यता को ठुकराते हुए कबीर काशी छोड़ मगहर चले गये और सन् १५१८ के आस पास वहीं देह त्याग किया। मगहर में कबीर की समाधि है जिसे हिन्दू—मुसलमान दोनों पूजते हैं।
भारत के महान संतों की श्रेणी में अग्रणी संत कबीर दास जी का जन्म काशी में लहरतारा नामक तालाब के पास सन् १३९८ में ज्येष्ठ पूर्णिमाी को हुआ...
संत कबीर दास
संत कबीर दास
संत कबीर दास
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भारत के महान संतों की श्रेणी में अग्रणी संत कबीर दास जी का जन्म काशी में लहरतारा नामक तालाब के पास सन् १३९८ में ज्येष्ठ पूर्णिमाी को हुआ।
यथा 'चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
ज्येष्ठ सुदी बरसाइत को पूरनमासी तिथि प्रकट भए ।।'
इनका पालन पोषण नीरू—नीमा नामक जुलाहा दंपति के यहां हुआ।
इनके जन्म के विषय में भी अनेक किवदंतियां प्रचलित है। कुछ लोगों का मानना है कि इनका जन्म एक ब्राह्मणी के यहां हुआ था । कबीर ने हिंदू-मुसलमान सभी समाज में व्याप्त रूढ़िवाद तथा कट्टरपंथ का खुलकर विरोध किया। उनके उपदेश बीजक नामक ग्रंथ में संकलित हैं जिसके तीन भाग हैं —साखी,सबद और रमैनी । गुरु ग्रंथ साहब में उनके २०० पद और २५० साखियां हैं। उन्होंने अपने उपदेश सरल भाषा में और दोहों के रूपों मे जनता के बीच पहुंचाया जो आसानी से लोकप्रिय हो गया। उन्होंने प्रचलित सभी कुप्रथाओं पर खुलकर कुठाराघात किया। मुर्ति पूजन के संबंध में वे कहते हैं—
'पाथर पूजे हरि मिले तों मै पूजूं पहाड़।
वा ते तो चक्की भली, पीस खाय संसार'
कबीर दिखावा का विरोध करते हैं वो कहते हैं कि तू यहां— वहां न भटक कर अपने मन के भीतर झांक। यथा —
'सुमिरन सुरति लगाई के मुख से कछु न बोल ।
बाहर का पट डारि के, भीतरि का पट खोल ।।
काशी में प्रचलित मान्यता है कि जो यहां मरता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। इस मान्यता को ठुकराते हुए कबीर काशी छोड़ मगहर चले गये और सन् १५१८ के आस पास वहीं देह त्याग किया। मगहर में कबीर की समाधि है जिसे हिन्दू—मुसलमान दोनों पूजते हैं।
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मालिक बाबा - परम पूज्य बौआ साहब जू
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