संतो आवै जाय सो माया । है प्रतिपाल काल नहिं वाके, ना कहुँ गया न आया ।। क्या मकसूद मच्छ कच्छ होना, शंखासुर न संहारा । है दयाल द्रोह  ...

संतो आवै जाय सो माया

संतो आवै जाय सो माया

संतो आवै जाय सो माया

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संतो आवै जाय सो माया ।
है प्रतिपाल काल नहिं वाके, ना कहुँ गया न आया ।।

क्या मकसूद मच्छ कच्छ होना, शंखासुर न संहारा ।
है दयाल द्रोह  नहिं वाके,  कहहु  कौन  को मारा ।।

वै कर्ता नहिं ब्राह कहाये, धरनि धरौ नहिं भारा ।
ई सब काम साहेब के नाहीं, झूठ कहै संसारा ।।

खंभ फोरि जो बाहर होई, ताहि पतीजै सब कोई ।
हिरणाकुस नख वोद्र विदारो, सो कर्ता नहिं होई ।।

बावन रूप न बलि को जाँचै, जो जाँचै सो माया ।
बिना विवेक सकल जग भरमे, माया जग भर्माया ।।

परसुराम क्षत्री नहिं मारे, ई छल माया कीन्हा ।
सतगुरू भक्ति भेद नहिं जानै, जीवहि मिथ्या दीन्हा ।।

सिरजनहार न ब्याही सीता, जल पषान नहिं बंधा ।
वै रघुनाथ एक कै सुमिरै, जो सुमिरै सो अंधा ।।

गोपी ग्वाल न गोकुल आया, कर्ते कंस न मारा ।
है मेहरबान सबहिन को साहेब, नहिं जीता नहिं हारा ।।

वै कर्ता नहिं बौद्ध कहाये, न​हीं असुर को मारा ।
ज्ञानहीन कर्ता कै भरमे, माया जग संहारा ।।

वै कर्ता नहिं भये कलंकी, नहीं कलिंगहि मारा ।
ई छल बल सब मायै कीन्हा, जत्त सत्त सब टारा ।।

दस अवतार ईश्वरी माया, कर्ता कै जिन पूजा ।
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, उपजै खपै सो दूजा ।।
                                                                       (शब्द—8)


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