भाई रे दुइ जगदीश कहाँ ते आया, कहु कौने बौराया । अल्लह राम करीमा केशव, हरि हजरत नाम धराया ।। गहना एक कनक ते गहना, यामें भाव न दूजा । ...

जगदीश

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जगदीश

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भाई रे दुइ जगदीश कहाँ ते आया,
कहु कौने बौराया ।
अल्लह राम करीमा केशव,
हरि हजरत नाम धराया ।।

गहना एक कनक ते गहना,
यामें भाव न दूजा ।
कहन सुनन का दुई करि थापे,
एक निमाज एक पूजा ।।

वही महादेव, वही महम्मद,
ब्रह्मा आदम कहिये ।
को हिन्दू को तुरूक कहावे,
एक जिमीं पर ​रहिए ।।

वेद कितेब पढ़े वै कुतुबा,
वै मुलना वै पांडे ।
बेगरि बेगरि नाम धराये,
एक मटिया के भांडे ।।

कहहिं कबीर वै दोनों भूले,
रामहिं किनहुं न पाया ।
वै खस्सी वै गाय कटावै,
बादहि जनम गँवाया ।।
               (रमैनी—30)
शब्दार्थ : कुतुबा — बहुत से किताब रखने वाला, बेगरि — अलग, भांडे — बरतन

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