3:47 PM
पंडित एक अचरज बड़ होई ।
एक मरि मुये अन्न नहिं खाई, एक मरि सीझै रसोई ।।
करि अस्नान देवन की पूजा, नौ गुण कांध जनेऊ ।
हँड़िया हाड़ हाड़ थड़िया मुख, अब षट्कर्म बनेऊ ।।
धर्म करै जहाँ जीव बधतु हैं, अकरम करै मोरे भाई ।
जो तोहरा को ब्राह्मण कहिए, काको कहैं कसाई ।।
कहहि कबीर सुनो हो संतो, भरम भूली दुनियाई ।
अपरंपार पार पुरूषोत्तम, या गति बिरले पाई ।।
(शब्द—46)
शब्दार्थ:— हे पंडितों एक बहुत बड़े अचरज की बात सुनाता हूं। एक जीव के मरने पर तो तुम शोक मनाते हो और अन्न नहिं खाते हो, दूसरी ओर एक जीव को मारकर रसोई बनाते हो। स्नान करके पवित्र होकर और कांधे पर नौ गुणों से सुशोभित जनेऊ धारण कर तुम देवों की पूजा करते हो। तुम्हारे बरतनों, रसोई (हँड़िया) में और मुख में हड्डी व मांस भरा है। क्या अब यही षट्कर्म रह गया है ? कहने को तो धर्म करते हो लेकिन जहाँ जीवों की हत्या होती है वह तो अकर्म (कुकर्म) है । इस पर यदि तुमको ब्राह्मण कहें तो फिर कसाई किसे कहेंगे। सद्गुरू कबीर साहेब कहते हैं कि ये दुनिया भरम में भूली हुई है। उस अपरंपार पुरूषोत्तम की गति बिरले ही प्राप्त करते हैं।
पंडित एक अचरज बड़ होई । एक मरि मुये अन्न नहिं खाई, एक मरि सीझै रसोई ।। करि अस्नान देवन की पूजा, नौ गुण कांध जनेऊ । हँड़िया हाड़ हाड...
जीव बध
जीव बध
जीव बध
8
10
99
पंडित एक अचरज बड़ होई ।
एक मरि मुये अन्न नहिं खाई, एक मरि सीझै रसोई ।।
करि अस्नान देवन की पूजा, नौ गुण कांध जनेऊ ।
हँड़िया हाड़ हाड़ थड़िया मुख, अब षट्कर्म बनेऊ ।।
धर्म करै जहाँ जीव बधतु हैं, अकरम करै मोरे भाई ।
जो तोहरा को ब्राह्मण कहिए, काको कहैं कसाई ।।
कहहि कबीर सुनो हो संतो, भरम भूली दुनियाई ।
अपरंपार पार पुरूषोत्तम, या गति बिरले पाई ।।
(शब्द—46)
शब्दार्थ:— हे पंडितों एक बहुत बड़े अचरज की बात सुनाता हूं। एक जीव के मरने पर तो तुम शोक मनाते हो और अन्न नहिं खाते हो, दूसरी ओर एक जीव को मारकर रसोई बनाते हो। स्नान करके पवित्र होकर और कांधे पर नौ गुणों से सुशोभित जनेऊ धारण कर तुम देवों की पूजा करते हो। तुम्हारे बरतनों, रसोई (हँड़िया) में और मुख में हड्डी व मांस भरा है। क्या अब यही षट्कर्म रह गया है ? कहने को तो धर्म करते हो लेकिन जहाँ जीवों की हत्या होती है वह तो अकर्म (कुकर्म) है । इस पर यदि तुमको ब्राह्मण कहें तो फिर कसाई किसे कहेंगे। सद्गुरू कबीर साहेब कहते हैं कि ये दुनिया भरम में भूली हुई है। उस अपरंपार पुरूषोत्तम की गति बिरले ही प्राप्त करते हैं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
मालिक बाबा - परम पूज्य बौआ साहब जू
Labels
Aarti
(1)
Adhyatm
(1)
Beejak
(4)
bhajan
(5)
Deepawali
(1)
Dohe
(2)
Festival
(1)
God
(3)
Guruwani
(1)
Ishwar
(1)
Jagdish
(1)
Kabir Das
(3)
Kabir ke Dohe
(2)
Kabir Wani
(4)
Maya
(1)
Ramaini
(1)
Sant Kabir ke Bhajan
(4)
Shabd
(2)
Vegetarianism
(2)
अहिंसा
(1)
आसरा
(1)
भजन
(2)
विविध
(2)
शाकाहार
(2)
संत वाणी
(11)
संत वाणी Sant Wani
(16)
0 comments: