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दीपोत्सव, भगवान श्रीराम के अपने पिता के वचनों का पालन करते हुए 14 वर्षों के कठिन वनवास, जिसमें माता सीता के हरण के साथ ही भातृ लक्ष्मण क...

दीपोत्सव

दीपोत्सव

A blog about greatest sant Kabir Das. It include satsang, Kabir Das ke Bhajan, Kabir ke Dohe, Ram, geet, shabd paths, moksha and many more.

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Deepawali
दीपोत्सव, भगवान श्रीराम के अपने पिता के वचनों का पालन करते हुए 14 वर्षों के कठिन वनवास, जिसमें माता सीता के हरण के साथ ही भातृ लक्ष्मण के शक्तिबाण से घायल होने तक कि कठिन काल भी सम्मिलित था, के उपरांत अयोध्या वापिस लौटने की खुशी में मनाया जाता है।
  वनवास के अवधि के विपरीत काल में भी कई अच्छे पल और अच्छी घटनाएं हुई जो न केवल प्रभु श्रीराम के लिये बल्कि सारे जगत के लिये आनंद का पल था। श्रीराम का मुनियों से मिलन ने उनके इहलौकिक अध्यात्मिकता को पराकाष्ठा दी, वहीं रावण वध ने जगत में अच्छाई को पुनः स्थापित किया और तीनों लोक को रावण रूपी आपदा से मुक्ति दिलाई।
  अर्थात, विपरीत परिस्थितियों में भी यदि आप भगवान के शरण में रहते हैं, तो मार्ग स्वतः सरल हो जाता है।

बुराई पर विजय का यह अर्थ कदापि नहीं लगानी चाहिए कि आप बुरे व्यक्ति को ढूंढे और उसका नाश करें। बुराई पर विजय का अर्थ स्वयं में निहित बुराई का नाश करना, बुरी आदतों, बुरे विचारों बुरे कर्मों पर विजय पाना।  सच्चे अर्थों में तभी आप विजयी होंगे।
  कभी-कभी कर्म पथ पर अभिमान के आ जाने से भी लोग अनायास ही बुराई का मार्ग पकड़ लेते हैं। परम् पूज्य सद्गुरु देव कहते हैं-
हो कर्ममय जीवन हमारा, कर्म पूजा नेम हो।
कर्म में, अभिमान का परित्याग ही तो क्षेम हो।।

अर्थात अभिमान का परित्याग कर देना चाहिए।
मैं परम् पूज्य सद्गुरु देव के वचनों को दुहराते हुए परमात्मा से यही प्रार्थना करता हूँ कि वो हमें सदैव सत्मार्ग पर चलने की प्रवृत्ति दें, शक्ति दें-
सब जीव तो संसार के,बहु भांति से संतप्त हैं।
आधि-व्याधि, दुःखादि से व्याकुल, विकल, संत्रस्त हैं।।
है देव मंगलमय, मिटा दो, कष्ट की उद्भावना।
भगवान परिपूरण करो, शुभ शांतिमय यह कामना।।

समस्त जगत के भगवत प्रेमियों को शुभ दीपावली।।
साहेब बन्दगी,  साहेब बन्दगी,  साहेब बन्दगी ।।

परम पूज्य सद्गुरू कबीर साहेब की पावन जयंती पर आप सभी को सप्रेम साहेब — बंदगी। परम पूज्य सद्गुरू कबीर साहेब की पावन जयंती पर आप सभी को...

परम पूज्य सद्गुरू कबीर साहेब

परम पूज्य सद्गुरू कबीर साहेब

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परम पूज्य सद्गुरू कबीर साहेब की पावन जयंती पर आप सभी को सप्रेम साहेब — बंदगी।

Sant-Kabir-saheb
परम पूज्य सद्गुरू कबीर साहेब की पावन जयंती पर आप सभी को सप्रेम साहेब — बंदगी।
प्रभु हम पर ऐसी दया—दृष्टि बनाएं कि हम सदैव सद्गुरू कबीर साहेब के पद—चिन्हों पर चलते रहें एवं उनके शुभाशीष से अनुगृहीत हों।

आज इस पावन सुअवसर पर परम पूज्य गुरूदेव बौआ साहब जू द्वारा रचित श्री कबीर साहेब जी की आरती आप सबों को समर्पित है:—

आरती सत्य कबीर की, शुभ आरती कीजै ।
सुंदर बदन बिलोकि के जीवन फल लीजै ।।
आरती सत्य कबीर .................
व्यापक ब्रह्म अखण्ड जो प्रभु अंतरयामी,
जीव उबारन कारणे प्रकटे जग स्वामी ।
ऐसे गुरू दयालु की वाणी सुनि लीजै ।।
आरती सत्य कबीर .................
लिंग, रूप नहिं रंग है सब जीव समाना,
तन माया में आइ के निज रूप भुलाना ।
अपने आत्म—स्वरूप का चिन्तन करि लीजै ।।
आरती सत्य कबीर .................
दया राखु सब जीव पर दु:ख काहु न देना,
सबका भला मनाइ के सेवा गहि लेना ।
साहब दीन दयालु की भक्ति मन दीजै ।।
आरती सत्य कबीर .................
तेरे घट में राम हैं निज घटहि समाओ,
अंतर—ध्यान लगाई के हरि को प्रकटाओ ।
ह्रदय राखि हरिनाम को सुमिरन करि लीजै ।।
आरती सत्य कबीर .................
संत गुरू संसार में हैं हरि के चेरा,
उनसे प्रीति लगाई के हरि पुर करू डेरा ।
सत्य सत्य हरि सत्य हैं सत्य को गहि लीजै ।।
आरती सत्य कबीर .................

प्रभु मिलन की प्यास माधव जल की पियास न जाइ । जल महि अगनि उठी अधिकाइ ।। तू जलनिधि हउ जल का मीनु । जल महि रहउ जलहि बिनु खीनु ।। तू प...

Thirst of Meeting with The God प्रभु मिलन की प्यास

Thirst of Meeting with The God प्रभु मिलन की प्यास

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प्रभु मिलन की प्यास

माधव जल की पियास न जाइ । जल महि अगनि उठी अधिकाइ ।।
तू जलनिधि हउ जल का मीनु । जल महि रहउ जलहि बिनु खीनु ।।
तू पिंजरू हउ सूअटा तोर । जमु मंजारू कहा करै मोर ।। 
तू तरूवरू हउ पंखी आहि । मंदभागी तेरो दरसनु नाहि ।।
तू सतगुरू हउ नउतनु चेला । कहि कबीर मिलु अंत की बेला ।।
                                                                              (राग गउड़ी—2)


अर्थ :— 
      हे माधव (ईश्वर) जल अर्थात तुमसे मिलन की प्यास जाती ही नहीं है। जल में और अधिक अग्नि धधकती है। अर्थात यह प्यास बढ़ती ही जाती है। तू जल का अथाह स्रोत हो और मैं उसमें रहने वाला मछली हूं। फिर भी प्यासी हूं। अर्थात् यह सारा जगत ईश्वर का बनाया हुआ है फिर भी हम उस ईश्वर के दर्शन से अछूते हैं। तुम पिंजरा हो तो मैं उसमें रहने वाला तोता (सुअटा) हूं। यम रूपी बिल्ली (मंजारू) मेरा क्या बिगाड़ेगी। तुम वृक्ष हो तो मैं उसपर रहने वाला पक्षी हूं। फिर भी मैं वो मन्दभाग्य वाला हूं जो तेरा दर्शन नहीं होता। तुम सत्गुरू हो और मैं तुम्हारा नवीन चेला हूं। कबीर साहेब कहतें हैं कि हे ईश्वर अंत समय में मुझे मिल जाओ।

                                                             साहेब बन्दगी—3

धन्य कबीर ​कुछ जलवा दिखाना हो तो ऐसा हो। बिना माँ—बाप के दुनिया में आना हो तो ऐसा हो।। धन्य कबीर..........................।। उ​तर...

Kabir Mahima कबीर महिमा

Kabir Mahima कबीर महिमा

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Kabir+Saheb+Birth


धन्य कबीर ​कुछ जलवा दिखाना हो तो ऐसा हो।
बिना माँ—बाप के दुनिया में आना हो तो ऐसा हो।।
धन्य कबीर..........................।।

उ​तरि असमान से इक नूर का गोला कमल—दल पर
वो आके बन गया बालक बहाना हो तो ऐसा हो।
कहूं क्या ढंग गंगा के किनारे शिष्य होने की
जो रामानन्द स्वामी को भुलाना हो तो ऐसा हो।
धन्य कबीर..........................।।

छुड़ा कर ढोंग दुनिया के सत्य उपदेश देते थे
सारे मैदान पर डंका बजाना हो तो ऐसा हो।।
बहस करने को पंडित मौलवी सब पास में आए
भए सरमिन्दे आपी खुद हराना हो तो ऐसा हो।
धन्य कबीर..........................।।

सुनाके ज्ञान निरवानी, किया दोउ दीन को चेला
अमर संसार में सद्गुरू कहाना हो तो ऐसा हो।।
छोड़ के फूल औ तुलसी चले सादेह निज घर को
परम अवतार इस जग से रवाना हो तो ऐसा हो।
धन्य कबीर..........................।।
               
                       साहेब बन्दगी—3

परम पूज्य सत् गुरू कबीर साहेब के प्राकट्य दिवस के पुनीत अवसर पर सभी को साहेब बंदगी।

Sadguru Kabir Saheb

Sadguru Kabir Saheb

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परम पूज्य सत् गुरू कबीर साहेब के प्राकट्य दिवस के पुनीत अवसर पर सभी को साहेब बंदगी।


जस मांसु पशु की तस मांसु नर की, रूधिर—रूधिर एक सारा जी । पशु की मांसु भखै सब कोई, नरहिं न भखै सियारा जी ।। ब्रह्म कुलाल मेदिनी भरिय...

मांस—भक्षण से परहेज

मांस—भक्षण से परहेज

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जस मांसु पशु की तस मांसु नर की,
रूधिर—रूधिर एक सारा जी ।
पशु की मांसु भखै सब कोई,
नरहिं न भखै सियारा जी ।।

ब्रह्म कुलाल मेदिनी भरिया,
उपजि बिनसि कित गईया जी ।
मांसु म​छरिया तो पै खैये,
जो खेतन मँह बोइया जी ।।

माटी के करि देवी देवा,
काटि काटि जिव देइया जी ।
जो तोहरा है सांचा देवा,
खेत चरत क्यों न लेइया जी ।।

कहँहि कबीर सुनो हो संतो,
राम नाम नित लेइया जी ।
जो किछु कियउ जिभ्या के स्वारथ,
बदल पराया देइया जी ।।
                                   (शब्द—70)

शब्दार्थ:— जैसा पशु का मांस, वैसा ही मनुष्य का मांस है दोनों में एक ही रक्त बहती है। मांसाहारी पशु मांस का भक्षण करते हैं और जो मनुष्य ऐसा करता है वो सियार के समान है। ईश्वर रूपी कुम्हार (ब्रह्म कुलाल) ने इतने बाग—बगीचे बनाये, फल—फूल बनाया वो सब उपज कर कहाँ जाते हैं। मांस—मछली खाना तो दोषपूर्ण (पै) है, उसे खाओ जो खेतों में बोआ जाता है। मिट्टी के देवी—देवता बनाकर उन्हें ​जीवित पशु की बलि चढ़ाते हो। यदि तुम्हारे देवता सचमुच बलि चाहते हैं तो वह खेतों में चरते हुए पशुओं को क्यों  न​हीं खा जाता। कबीर साहेब कहते हैं कि यह सब कर्म त्याग कर नित राम—नाम का सुमिरन किया करो अन्यथा तुम जो भी अपने जिह्वा के स्वाद के कारण यह कर रहे हो उसका बदला भी तुम्हें उसी तरह चुकाना पड़ेगा।

वेदों में भी कहा गया है:—

''व्रीहिमत्तं यवमत्तमथोमाषम तिलम्
एष वां भागो निहितो रत्नधेयाय
दन्तौ मा हिंसिष्टं पितरं मातरं च।''


शब्दार्थ: चावल खाओ(व्रीहिम् अत्तं), जौ खाओ(यवम् अत्तं) और उड़द खाओ(अथो माषम्) और तिल खाओ(अथो तिलम्)। हे ऊपर—नीचे के दांत(दन्तौ) तुम्हारे(वां)  ये भाग(एष भागो) निहित हैं उत्तम फलादि के लिए (रत्नधेयाय)। किसी नर और मादा को(पितरं मातरं च) मत मारो(मा हिं सिष्टं)।

पंडित एक अचरज बड़ होई । एक मरि मुये अन्न नहिं खाई, एक मरि सीझै रसोई ।। करि अस्नान देवन की पूजा, नौ गुण कांध जनेऊ । ​हँड़िया हाड़ हाड...

जीव बध

जीव बध

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पंडित एक अचरज बड़ होई ।
एक मरि मुये अन्न नहिं खाई, एक मरि सीझै रसोई ।।

करि अस्नान देवन की पूजा, नौ गुण कांध जनेऊ ।
​हँड़िया हाड़ हाड़ ​थड़िया मुख, अब षट्कर्म बनेऊ ।।

धर्म करै जहाँ जीव बधतु हैं, अकरम करै मोरे भाई ।
जो तोहरा को ब्राह्मण कहिए, काको कहैं कसाई ।।

कहहि कबीर सुनो हो संतो, भरम भूली दुनियाई ।
अपरंपार पार पुरूषोत्तम, या गति बिरले पाई ।।
                                                               (शब्द—46)

शब्दार्थ:— हे पंडितों एक बहुत बड़े अचरज की बात सुनाता हूं। एक जीव के मरने पर तो तुम शोक मनाते हो और अन्न नहिं खाते हो, दूसरी ओर एक जीव को मारकर रसोई बनाते हो। स्नान करके पवित्र होकर और कांधे पर नौ गुणों से सुशोभित जनेऊ धारण कर तुम देवों की पूजा करते हो। तुम्हारे बरतनों, रसोई (​हँड़िया) में और मुख में हड्डी व मांस भरा है। क्या अब यही षट्कर्म रह गया है ?  कहने को तो धर्म करते हो लेकिन जहाँ जीवों की हत्या होती है वह तो अकर्म (कुकर्म) है । इस पर यदि तुमको ब्राह्मण कहें तो फिर कसाई किसे कहेंगे। सद्गुरू कबीर साहेब कहते हैं कि ये दुनिया भरम में भूली हुई है। उस अपरंपार पुरूषोत्तम की गति बिरले ही प्राप्त करते हैं।

भाई रे दुइ जगदीश कहाँ ते आया, कहु कौने बौराया । अल्लह राम करीमा केशव, हरि हजरत नाम धराया ।। गहना एक कनक ते गहना, यामें भाव न दूजा । ...

जगदीश

जगदीश

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भाई रे दुइ जगदीश कहाँ ते आया,
कहु कौने बौराया ।
अल्लह राम करीमा केशव,
हरि हजरत नाम धराया ।।

गहना एक कनक ते गहना,
यामें भाव न दूजा ।
कहन सुनन का दुई करि थापे,
एक निमाज एक पूजा ।।

वही महादेव, वही महम्मद,
ब्रह्मा आदम कहिये ।
को हिन्दू को तुरूक कहावे,
एक जिमीं पर ​रहिए ।।

वेद कितेब पढ़े वै कुतुबा,
वै मुलना वै पांडे ।
बेगरि बेगरि नाम धराये,
एक मटिया के भांडे ।।

कहहिं कबीर वै दोनों भूले,
रामहिं किनहुं न पाया ।
वै खस्सी वै गाय कटावै,
बादहि जनम गँवाया ।।
               (रमैनी—30)
शब्दार्थ : कुतुबा — बहुत से किताब रखने वाला, बेगरि — अलग, भांडे — बरतन

संतो आवै जाय सो माया । है प्रतिपाल काल नहिं वाके, ना कहुँ गया न आया ।। क्या मकसूद मच्छ कच्छ होना, शंखासुर न संहारा । है दयाल द्रोह  ...

संतो आवै जाय सो माया

संतो आवै जाय सो माया

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संतो आवै जाय सो माया ।
है प्रतिपाल काल नहिं वाके, ना कहुँ गया न आया ।।

क्या मकसूद मच्छ कच्छ होना, शंखासुर न संहारा ।
है दयाल द्रोह  नहिं वाके,  कहहु  कौन  को मारा ।।

वै कर्ता नहिं ब्राह कहाये, धरनि धरौ नहिं भारा ।
ई सब काम साहेब के नाहीं, झूठ कहै संसारा ।।

खंभ फोरि जो बाहर होई, ताहि पतीजै सब कोई ।
हिरणाकुस नख वोद्र विदारो, सो कर्ता नहिं होई ।।

बावन रूप न बलि को जाँचै, जो जाँचै सो माया ।
बिना विवेक सकल जग भरमे, माया जग भर्माया ।।

परसुराम क्षत्री नहिं मारे, ई छल माया कीन्हा ।
सतगुरू भक्ति भेद नहिं जानै, जीवहि मिथ्या दीन्हा ।।

सिरजनहार न ब्याही सीता, जल पषान नहिं बंधा ।
वै रघुनाथ एक कै सुमिरै, जो सुमिरै सो अंधा ।।

गोपी ग्वाल न गोकुल आया, कर्ते कंस न मारा ।
है मेहरबान सबहिन को साहेब, नहिं जीता नहिं हारा ।।

वै कर्ता नहिं बौद्ध कहाये, न​हीं असुर को मारा ।
ज्ञानहीन कर्ता कै भरमे, माया जग संहारा ।।

वै कर्ता नहिं भये कलंकी, नहीं कलिंगहि मारा ।
ई छल बल सब मायै कीन्हा, जत्त सत्त सब टारा ।।

दस अवतार ईश्वरी माया, कर्ता कै जिन पूजा ।
कहहिं कबीर सुनो हो संतो, उपजै खपै सो दूजा ।।
                                                                       (शब्द—8)


राखि लेहु हम तैं बिगरी । शील धरम जपु भगत न कीन्ही, हउ अभिमान टेढ़ पगरी ।। अमर जानि संची इह काइआ, इह मिथिआ कांची गगरी । जिनहि निवाजि साज...

राखि लेहु हम तैं बिगरी

राखि लेहु हम तैं बिगरी

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राखि लेहु हम तैं बिगरी ।
शील धरम जपु भगत न कीन्ही, हउ अभिमान टेढ़ पगरी ।।
अमर जानि संची इह काइआ, इह मिथिआ कांची गगरी ।
जिनहि निवाजि साजि हम कीए, तिसही बिसारि अवर लग री ।।
संधिक ओहि साधू नहि कहिअउ, स​रनि परे तुम्हरि पगरी ।
कहि कबीर इह बिनती सुनिअहु, मत घालहु जम की खबरी ।।

भारत के महान संतों की श्रेणी में अग्रणी संत कबीर दास जी का जन्म काशी में लहरतारा नामक तालाब के पास सन् १३९८ में ज्येष्ठ पूर्णिमाी को हुआ...

संत कबीर दास

संत कबीर दास

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भारत के महान संतों की श्रेणी में अग्रणी संत कबीर दास जी का जन्म काशी में लहरतारा नामक तालाब के पास सन् १३९८ में ज्येष्ठ पूर्णिमाी को हुआ।
यथा 'चौदह सौ पचपन साल गए, चन्द्रवार एक ठाठ ठए।
    ज्येष्ठ सुदी बरसाइत को पूरनमासी तिथि प्रकट भए ।।'
इनका पालन पोषण नीरू—नीमा नामक जुलाहा दंपति के यहां हुआ।
इनके जन्म के विषय में भी अनेक किवदंतियां प्रचलित है। कुछ लोगों का मानना है कि इनका जन्म एक ब्राह्मणी के यहां हुआ था । कबीर ने हिंदू-मुसलमान सभी समाज में व्याप्त रूढ़िवाद तथा कट्टरपंथ का खुलकर विरोध किया। उनके उपदेश बीजक नामक ग्रंथ में संकलित हैं जिसके तीन भाग हैं —साखी,सबद और रमैनी । गुरु ग्रंथ साहब में उनके २०० पद और २५० साखियां हैं। उन्होंने अपने उपदेश सरल भाषा में और दोहों के रूपों मे जनता के बीच पहुंचाया जो आसानी से लोकप्रिय हो गया। उन्होंने प्रचलित सभी कुप्रथाओं पर खुलकर कुठाराघात किया। मुर्ति पूजन के संबंध में वे कहते हैं—
            'पाथर पूजे हरि मिले तों मै पूजूं पहाड़।
            वा ते तो चक्की भली, पीस खाय संसार'
कबीर दिखावा का विरोध करते हैं वो कहते हैं कि तू यहां— वहां न भटक कर अपने मन के भीतर झांक। यथा —
           'सुमिरन सु​रति लगाई के मुख से कछु न बोल ।
            बाहर का पट डारि के, भीतरि का पट खोल ।।

काशी में प्रचलित मान्यता है कि जो यहां मरता है उसे मोक्ष प्राप्त होता है। इस मान्यता को ठुकराते हुए कबीर काशी छोड़ मगहर चले गये और सन् १५१८ के आस पास वहीं देह त्याग किया। मगहर में कबीर की समाधि है जिसे हिन्दू—मुसलमान दोनों पूजते हैं।

Saint   Kabir   Das   says   that   there is   no king   on the universe   as   God .  These   are   the   kings   of  their   sove...

King of Kabir हरि समान ​नहीं राजा

King of Kabir हरि समान ​नहीं राजा

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Saint
 Kabir Das says that there is no king on the universe as GodThese are the kings of their sovereignty to a few daysKing, he is the Almighty God, whose power is spread over three BhuvanFinally, the God is to be found in creatures whose rule is infinite.

संत कबीर दास कहते हैं कि इस धरती पर हरि के समान कोई राजा नहीं है। ये जो भी राजा हैं इनकी प्रभुता थोड़े दिनों की है। राजा तो वो सर्वशक्तिमान प्रभु है जिसकी सत्ता तीनों भुवन पर व्याप्त है । जीव को अंत में उस प्रभु में मिल जाना है जिसकी प्रभुता अनंत है।कोऊ हरि समान ​नहीं राजा ।ये भूपति सब दिवस चारि के झूठे करत दिवाजा ।।तेरा जनु होई सोइ कत डोलै तीन भुवन पर छाजा ।हाथु पसारि सकै को जन कउ बोलि सकै न अंदाजा ।।चेति अचेत मूढ़ मन मेरे बाजे अनहद बाजा ।कहि कबीर संसा भ्रम चूको ध्रूव प्रह्लाद निवाजा ।

गोविंदे तूं निरंजन तूं निरंजन तूं निरंजन राया । तेरे रूप नाही रेख नाहीं मुदे नाही माया ।। समद नाहीं शिखर नाहीं, धरती नाहीं ग...

Nature of God भगवान का स्वरूप

Nature of God भगवान का स्वरूप

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गोविंदे तूं निरंजन तूं निरंजन तूं निरंजन राया । तेरे रूप नाही रेख नाहीं मुदे नाही माया ।। समद नाहीं शिखर नाहीं, धरती नाहीं गगनां । रवि ससि दोउ एकै नाहीं, बहत नाहीं पवनां ।।
नाद नाहीं ब्यंद नाहीं, काल नाहीं काया । जब तै जल व्यंब न होते, तब तूं हीं राम राया ।। जप नाहीं तप नाहीं, जोग ध्यान नहीं पूजा । शिव नाहीं शक्ति नाहीं, देव नहीं दूजा ।। रूग न जुग न श्याम अथरबन, वेद नहीं व्याकरनां । तेरी गति तू ही जानैं, कबीरा तेरी सरनां ।।

ना इहु मानसु ना इहु देउ । ना इहु जती कहावै सेउ ।। ना इहु जोगी ना अवधूता । ना इसु माइ न काहू पूता ।।

जीव का स्वरूप Nature of Soul

जीव का स्वरूप Nature of Soul

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ना इहु मानसु ना इहु देउ । ना इहु जती कहावै सेउ ।। ना इहु जोगी ना अवधूता । ना इसु माइ न काहू पूता ।।

संतो देखत जग बौराना । साँच कहौं तो मारन धावै, झूठै जग पतियाना ।। नेमी देखा धर्मी देखा, प्रात करै असनाना । आतम मारि पषानहि पूजै, उनमें...

संतो देखत जग बौराना

संतो देखत जग बौराना

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संतो देखत जग बौराना ।
साँच कहौं तो मारन धावै, झूठै जग पतियाना ।।
नेमी देखा धर्मी देखा, प्रात करै असनाना ।
आतम मारि पषानहि पूजै, उनमें किछुउ न ज्ञाना ।।

भाँग तम्बाकू धूतरा, आँफू और शराब। कौन करेगा बन्दगी, ये तो हुए खराब।। भाँग भखे बल बुद्धि को, आँफू अहमक होय। दो अमलन अवगुण कहा, ज्ञानवन्त...

नशा छाड़ि जीव भजन करहु

नशा छाड़ि जीव भजन करहु

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नशा छाड़ि जीव भजन करहु

भाँग तम्बाकू धूतरा, आँफू और शराब।
कौन करेगा बन्दगी, ये तो हुए खराब।।
भाँग भखे बल बुद्धि को, आँफू अहमक होय।
दो अमलन अवगुण कहा, ज्ञानवन्त नर जोय।।

संतो धोखा कासूं कहिए। गुण में निर्गुण, निर्गु्ण में गुण बाट छाड़ि क्यों बहिए।। अजरा अमर कथे सब कोई अलख न कथिआ जाई। नाती बरन रूप नहीं...

हरि

हरि

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God


संतो धोखा कासूं कहिए।
गुण में निर्गुण, निर्गु्ण में गुण बाट छाड़ि क्यों बहिए।।
अजरा अमर कथे सब कोई अलख न कथिआ जाई।
नाती बरन रूप नहीं वाके घट—घट रहा समाई।।

कबिरा गर्व न कीजिए, कबहुँ न हंसिए कोई। अजय नाव समुद्र में, का जाने का होई।। कबिरा सं​गति साधू की, नित प्रति कीजै जाय। दुर्मति दूर बह...

कबीर वाणी

कबीर वाणी

A blog about greatest sant Kabir Das. It include satsang, Kabir Das ke Bhajan, Kabir ke Dohe, Ram, geet, shabd paths, moksha and many more.

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कबिरा गर्व न कीजिए, कबहुँ न हंसिए कोई।
अजय नाव समुद्र में, का जाने का होई।।

कबिरा सं​गति साधू की, नित प्रति कीजै जाय।

दुर्मति दूर बहावसी, देसी सुमति दृढ़ाय।।